शुक्रवार, 14 नवंबर 2014

जैसी करनी वैसी भरनी

इस संसार में मनुष्य जैसा करता है या जैसा बोता है वैसा ही फल उसे मिलता है। कहते हैं-
                      'जैसी करनी वैसी भरनी' और
                'बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से खाय'
इन उक्तियों का सीधा-सा अर्थ है कि मनुष्य जैसा व्यवहार दूसरों के साथ करेगा वैसा ही उसे बदले में मिलेगा। अथवा जैसा कर्म करेगा वैसा ही फल भोगेगा। दूसरी उक्ति समझाती है कि बबूल का पेड़ बोने पर मीठे स्वादिष्ट आमों को खाना असंभव है। आम का फल खाने के लिए आम का बीज बोना पड़ता है बबूल का नहीं।
        हमें वही मिलता है जो जीवन में हम दूसरों के साथ बाँटते हैं। विष साझा करेंगे तो हम अमृत पाएँगे ऐसी कल्पना करना ही व्यर्थ है। हम अपने लिए सबसे मधुर व्यवहार की अपेक्षा करते हैं पर स्वयं इसके विपरीत आचरण करते हैं। उस स्थिति में ऐसा सोचना सर्वथा अनुचित है। लेने और देने के बाट एक जैसे होने चाहिएँ तभी परस्पर सौहार्द बना रहता है अन्यथा उलाहने ही शेष रह जाते हैं। समभाव रखकर चलने से ही व्यवहार में संतुलन बना रहता है।
      हम अगर चारों ओर हर समय खुशियाँ बाँटते रहेंगे तो ईश्वर की कृपा से हमारी झोली में भी खुशियाँ ही आएंगीं। इसके विपरीत यदि हम स्वार्थ, नफरत या ईष्या-द्वेष की खेती करेंगे तो यही फसल काटेंगे। तब हम सिर धुनकर पछताते हैं। उस समय हमारे साथी यही बनते हैं अच्छाई, प्रेम आदि नहीं। फिर हम पानी पी पीकर सबको कोसते हैं। खून सफेद होने का रोना रोते हैं अपने गिरेबान में झांकने का प्रयास ही नहीं करते।
        हम पर निर्भर करता है कि हमारी परिकल्पना किस तरह के समाज, परिवार अथवा देश का निर्माण करने की है? जैसा भी हम चाहते हैं उसके लिए यत्न तो हमीं को करना पड़ेगा। यदि हम चारों ओर सौहार्द बनाना चाहते हैं तो इस दिशा में कदम बढ़ाना होगा।

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