सोमवार, 24 नवंबर 2014

शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्

उपनिषद् का उपदेश है कि हमारा शरीर एक रथ है। हमारा शरीर एक वाहन ही तो है जो चलता रहता है और हमें भी चलाता है। इसमें यदि कोई रुकावट आ जाए यानि इसमें रोग आ जाए, एक्सीडेंट हो जाए या किसी कारण से चोट आ जाए तो सब अस्त-व्यस्त हो जाता है। मृत्यु आने पर जब यह निष्क्रिय हो जाता है। जैसे गाड़ी के नष्ट हो जाने पर उसे भंगार में फैंक देते हैं उसी प्रकार इस शरीर को मृत्यु के पश्चात श्मशान में जाकर जला देते हैं।
        इससे यही समझ आता है- 'जान है तो जहान है।' यदि शरीर स्वस्थ है तो हम दुनिया के किसी भी काम को करने में समर्थ होते हैं परंतु इसके अस्वस्थ होते ही चक्का जाम जैसी स्थिति हो जाती है। हम स्वयं को असहाय समझने लगते हैं। ऐसा लगता है मानो हमारे साथ-साथ पूरी दुनिया भी स्थिर हो गयी है।
     महाकवि कालिदास ने सत्य कहा है- 'शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्' अर्थात् हमारा शरीर धर्म(कर्म) का साधन है। शरीर स्वस्थ है तो हम अपने सामाजिक, नैतिक, धार्मिक, पारिवारिक दायित्वों को पूर्ण कर सकते हैं। शरीर के अस्वस्थ होने पर हमें किसी से बात करना या किसी भी प्रकार के शोर को सुनना नहीं चाहते बल्कि चिड़चिड़े हो जाते हैं। कहने का तात्पर्य है कि हमें कुछ भी अच्छा नहीं लगता।
       इस प्रकार कष्ट की स्थिति में हम किसी भी काम को करने में असमर्थ हो जाते हैं। हम भगवद् भजन भी नहीं कर सकते। वह भी तभी कर सकेंगे जब हम स्वयं स्वस्थ होंगे। शरीरिक कष्टों के आने पर और उस परेशानी के चलते हम प्रभु को स्मरण भी न करके उसे अपने कष्टों के लिए उलाहने देते हैं।
        शरीर का स्वस्थ रहना बहुत हमारे लिए बहुत आवश्यक है। इसके लिए हमें स्वास्थ्य के नियमों का पालन करना चाहिए। उचित आहार-विहार पर ध्यान देना आवश्यक है। इसे सजा-संवार कर रखना चाहिए। मात्र शरीर को सब कुछ समझ कर चौबीसों घंटे इसी शरीर की सेवा में लगे रहकर शेष सभी दायित्वों से मुँह नहीं मोड़ना अनुचित है।
      हमारा यह शरीर साधन है साध्य नहीं। नश्वर शरीर को ही सब कुछ मानकर दीन-दुनिया भूल जाना उचित नहीं। किसी विद्वान ने इस विषय में कहा है-
  'क्या तन माँजता रे आखिर माटी में मिल जाना'
       समय बीतते यह शरीर विकारों से युक्त हो जाता है। इसका सौंदर्य भी कुछ निश्चित समय के लिए ही होता है। जहाँ तक हो सके शरीर से आगे सोच कर इस संसार में आने के उद्देश्य(मोक्ष) को प्राप्त करने की ओर कदम बढ़ाएँ और अपने इस मानव जीवन को सफल बनाने के लक्ष्य में सफलता प्राप्त करें।

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