बुधवार, 5 नवंबर 2014

तलाकशुदा परिवार के बच्चे

टीवी पर एक नये शुरू होने वाले सीरियल के विज्ञापन में एक कटु सत्य दर्शाया जाता है कि तलाक पति-पत्नी का होता है माँ-बाप का नहीं। इसमें तलाकशुदा जोड़े की बेटी जो अपनी माँ के पास थी अपनी शादी पर पिता को बुलाती है। वह चाहती है कि पिता उसका कन्यादान करके उसे विदा करे। परंतु माँ को यह मंजूर नहीं। शेष तो जब सीरियल आरंभ होगा तब पता चलेगा कि वास्तविकता क्या थी।
       कुछ दिन पूर्व इस तलाक के विषय पर मैंने लिखा था और आप सुधी मित्रों ने भी अपने विचार रखे थे। हम सब जानते हैं बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए माता और पिता दोनों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
        माता-पिता या यूँ कहिए पति-पत्नी के झगड़े में बलि का बकरा बच्चे ही बनते हैं।बच्चा चाहे माँ के पास पलकर बढ़ा हो या पिता के पास। उसके मन का खालीपन किसी को नहीं दिखाई देता। जब दूसरे बच्चों को माता व पिता दोनों के साथ इकट्ठा देखता है तो उसका कोमल हृदय तार-तार हो जाता है। एक टीस चुभन बनकर उसके मन में गढ़ती है। वह अपने भाग्य को कोसता है।
    अपने मन की भड़ास निकालने के लिए बच्चा जायज-नाजायज माँग रखता है, जिद करता है, दूसरे बच्चों के साथ मारपीट करता है। जब स्कूल या आस-पड़ोस से उसकी शिकायत आती है तो वह अपनी गलती दूसरों पर थोपता है। ऐसा वह इसलिए करता है क्योंकि उसने अपने माता-पिता को इस तरह तकरार करते हुए देखा था। वह भी उनकी ही तरह बहस करता है और हार नहीं मानता। उसे अपने माता या पिता को सताकर हार्दिक प्रसन्नता मिलती है।
       ऐसे बच्चे कभी-कभी माता या पिता को सजा देने के लिए गलत रास्ते पर भी चल पड़ते हैं। अवांछित तत्वों की संगति में जाकर समाज से कट जाते हैं। कई बच्चे नशीले पदार्थों का सेवन करके अपना व परिवार का जीवन नरक बना देते हैं।
     जिन बच्चों के लिए माता-पिता सारा जीवन संघर्ष करते हैं। उनकी हर इच्छा को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। उन्हीं बच्चों के लिए अपने अहम की बलि नहीं चढ़ा सकते? अपने-अपने पूर्वाग्रहों को छोड़ कर आपस में सामंजस्य बनाकर नहीं रह सकते?
     जीवन समझौते का ही दूसरा नाम है। यदि वे अपना-अपना जीवन नये सिरे से शुरू करना चाहते हैं तो वहाँ भी तो कदम-कदम पर समझौता करना पड़ेगा। इसलिए यदि उसी गृहस्थ में आपसी सामंजस्य कर लें तो आने वाली पीढ़ी को अभिशाप से बचाया जा सकता है।

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