गुरुवार, 6 नवंबर 2014

पथिक किनारा छोड़ो आगे बढ़ लो भाई

पथिक किनारा छोड़ो आगे बढ़ लो भाई
मंजिल राह निहारे नहीं अब दम लो भाई
जाओ भागो छू मनको खुश कर लो भाई
यूँ मायूस बैठ दिवा सपने तो न लो भाई

थोड़ी हिम्मत करो न बनो हरजाई भाई
पास बहुत पहुँच चुके हो तुम बस भाई
आने-जाने वालों की न करो हसाई भाई
क्षण भर देरी की न होती है सहाई भाई

पाना है तब कुछ खोना पड़ेगा मेरे भाई
लक्ष्य साध लो अब आलस छोड़ो भाई
जगमग देख न भटको तुम यूँ अब भाई
हसते तुमको देखा देखी सब जन भाई

ऊबड़-खाबड़ रास्ते पार कर पाये भाई
नदियाँ नाले औ समन्दर जो आये भाई
तैर-तैरके उन सबको ही छल पाये भाई
वन-उपवन मिलकर न ललचा पाये भाई

आस की वो जो रेखा देखी थी तब भाई
याद करो न भूलो उसको तुम अब भाई
आस भी बैठी ताक रही है आस में भाई
देखो करो निराश न उसको तुम मेरे भाई

देखो पुकार रही मंजिल तुमको है भाई
थोड़े कदम बढा पास में पहुँचो मेरे भाई
जीवन में आता मौका एक बार बस भाई
एक बार, बस एक बार सुन लो मेरे भाई

लक्ष्य न पाओगे तब हार जाओगे भाई
होगे निराश न थामेगा हाथ ये मेरे भाई
रोओगे पछताओगे रे बारबार फिर भाई
खो जाओगे तन्हाई में न पूछेंगे तब भाई।

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