मंगलवार, 18 नवंबर 2014

धन की तीन गतियाँ

धन की तीन तरह की गति होती है- दान देना, उसका उपभोग और नाश। इसी बात को हमें समझाते हुए कवि ने निम्न श्लोकांश में बहुत ही सुन्दर शब्दों में कहा है-
               दानं भोगो नाशस्तिस्त्र: गतय: वित्तस्य।
इसका अर्थ है कि अपनी ईमानदारी व परिश्रम से कमाए गए धन का कुछ अंश दान देना चाहिए। उसका कारण है कि हम सामाजिक प्राणी हैं और समाज से जाने-अनजाने बहुत कुछ लेते हैं। अत: समाज की भलाई के लिए परोपकारार्थ हमें अपनी आत्मिक संतुष्टि के लिए दान करना चाहिए। यह धन की पहली स्थिति है और धन का सदुपयोग कहलाता है।
      धन की दूसरी गति है उसका उपयोग। यदि हम अपने खून-पसीने से कमाए पैसे का सदुपयोग करते हैं। बच्चों की शिक्षा, उन्हें जीवन में व्यवस्थित करने, घर-परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने में खर्च करते हैं तो हम धन का सदुपयोग कर रहे हैं। यहाँ मैं एक बात और जोड़ना चाहती हूँ कि धन यदि ईमानदारी, सच्चाई से कमाया जाए तो उसमें बहुत बरकत होती है। इसके विपरीत यदि धन भ्रष्टाचार, बेइमानी, दूसरों को धोखा देकर अर्थात् नाजायज तरीके से कमाया जाए तो वह धन उसी तरह व्यय भी होता है। ऐसा धन व्यसनों में, बिमारी आदि में खर्च होता है, चोर-डाकुओं को लूट का रास्ता दिखाता है अथवा दामाद के काम आता है। ये सब मैं नहीं कह रही हमारे ग्रन्थ कहते हैं। कभी-कभी ऐसा धन बच्चों की बर्बादी का कारण भी बनता है।
       सच्चाई व ईमानदारी से धन कमाने वाले जीवन में बहुत अधिक उदारता से शायद न खर्च कर सकें पर बड़ी शांति से जीवन जीते हैं। परंतु गलत तरीकों से धन कमाने वाले ऐश अवश्य करते हैं और पानी की तरह पैसा बहा सकते हैं पर हमेशा एक के बाद एक परेशानी से घिरे रहते हैं।
     धन की तीसरी गति है नाश। उसका दान न करके, उपयोग न करके सिर्फ जोड़ने की प्रवृत्ति रहेगी या कहें कि 'चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए' वाली आदत धन के विनाश का कारण बनती है। ऐसा धन बुराइयों का कारण बनता है।
   जीते जी जब मनुष्य धन पर कुंडली मार कर बैठता है तो उसकी मृत्यु के पश्चात अनायास मिले धन का प्रायः बच्चे दुरूपयोग करते हैं व अपनी जायज-नाजायज इच्छाओं पर बर्बाद करते हैं।
     पहले जमाने में लोग जमीन में धन गाढ़ते थे। ऐसा धन जो परिवार की जानकारी में नहीं होता था वह पता नहीं कब और किसके उपयोग में आता था।सालों-साल जमीन में दबा रह जाता था।
       आज भी ऐसे धन की कमी नहीं। पति-पत्नी दोनों ही एक-दूसरे से और यहाँ तक कि बच्चों से छुपाकर धन संग्रह करते हैं और उसे हवा भी नहीं लगने देते। उन में से यदि किसी एक की भी मृत्यु हो जाए तो दूसरा साथी या उनके बच्चे इस धन से अनभिज्ञ रहते हैं।इसी तरह बेनामी संपत्ति की भी यही स्थिति होती है।
       प्राकृतिक आपदाओं- भूकंप, बाढ़, भूस्खलन आदि के कारण भी धन-सम्पत्ति नष्ट हो जाती है। इस तरह धन का विनाश होता है।
          धन जीवन में बहुत कुछ है पर सब कुछ नहीं।धन से सुख-सुविधा के साधन जुटाए जा सकते हैं परंतु सुख, स्वास्थ्य, प्रसन्नता, रक्त संबंध आदि नहीं खरीदे जा सकते। इसलिए धन-संपत्ति पर व्यर्थ ही अभिमान नहीं करना चाहिए। जहाँ यह जीवन में खुशियाँ देता है वहीं अनेक मुसीबतों का कारण भी है।

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