शनिवार, 22 नवंबर 2014

सरस्वती का खजाना

हमारे पास जो भी धन-समृद्धि है उसमें हम जितना जोड़ते जाते हैं वह उतनी ही बढ़ती जाती है। समय बीतते उनमें कई गुणा की बढ़ोत्तरी हो जाती है। हम अपना धन विभिन्न-विभिन्न योजनाओं में लगाते हैं, जमीन-जयदाद या हीरे-जवाहरात खरीदते हैं तो समय बीतते वह अधिक-अधिक हो जाता है। हम उसे दिन-प्रतिदिन और-और बढ़ाने की जुगत में लगे रहते हैं।
     इसके विपरीत उसे जितना खर्च करते हैं उतना ही वह कम होता जाता है।यदि कोई मनुष्य व्यसनों में फंस जाए तो उसका कुबेर जैसा समृद्ध खजाना भी खाली हो जाता है।
      ईश्वर की महिमा कहिए विद्या की देवी सरस्वती का खजाना बड़ा ही विचित्र है जो खर्च करने पर बढ़ता है और जोड़ने पर नष्ट होता है।किसी विद्वान ने बड़े ही सुन्दर शब्दों में इसी बात को कहा है-
          अपूर्वो  हि  कोशोsयं  विद्यते  तव  भारति।
          व्ययतो वृद्धमायाति क्षयमायाति संचयात्॥
       कहने का तात्पर्य है कि देवी सरस्वती का यह खजाना बाकी खजानों से बिल्कुल अलग है। इसको यदि हम बाँटेगे तो यह कई गुणा बढ़ जाएगा। पर यदि हम यह सोचें कि हमने बड़ा श्रम करके इसे अर्जित किया है तो दूसरों के साथ क्यों बाँटे तो यह हमारी मृत्यु के बाद हमारे साथ ही नष्ट हो जाएगा। इसलिए कई मूल्यवान विद्यायें विद्वानों की स्वार्थपरता के कारण नष्ट हो गयी हैं।
       वैसे हम सभी ने अपने अध्ययन काल में अनुभव किया होगा कि जिन प्रश्नों को हम साथियों को समझाते थे वे हमें शीघ्र स्मरण हो जाते थे। ऐसे ही विद्या बढ़ती है। अपने अनुभवों को या अपने ज्ञान को हम जितना अधिक बाँटेंगे उतना ही हमारे ज्ञान में वृद्धि होगी।
       अपनी धन-संपत्ति को किसी के साथ बाँटे या न बाँटे पर अपने ज्ञान व अनुभवों को प्रसारित करने में कंजूसी न करें।

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