रविवार, 30 नवंबर 2014

वसुधैव कुटुम्बकम्

'वसुधैव कुटुम्बकम्' का अर्थ है सारी पृथ्वी अपना घर है और 'आत्मवत्सर्वभूतेषु य: पश्यति स पण्डित:' अर्थात् सभी लोगों को अपने समान समझने वाला विद्वान है।
       ये उक्तियाँ सार्वभौमिक सत्य हैं व सारी मानव जाति के लिए हितकारी हैं। यदि पूरा विश्व इन्हें आत्मसात कर ले तो अन्याय, अत्याचार, आतंकवाद, युद्ध जैसी जटिल समस्याएँ स्वयं ही समाप्त हो जाएँगी। ऐसा होने पर किसी भी देश को असीमित सैन्य बल की आवश्यकता नहीं रहेगी। मुँह बाए खड़ी आतंकवाद जैसी समस्याओं से निपटने की जरूरत नहीं पड़ेगी वे खुद-ब-खुद ही समाप्त हो जाएँगी।
      कोई किसी पर अत्याचार या अन्याय भी नहीं करेगा। सबको अपने समान समझने का मतलब है कि हम दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा हम अपने लिए चाहते हैं। यह एक आदर्श स्थिति है जिसकी अनुपालना हम सब का धर्म है।
      आज चारों ओर सभी यही कहते सुनाई पड़ते हैं कि खून सफेद हो गए हैं, कोई किसी को फूटी आँख नहीं सुहाता, लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए हैं आदि। ऐसे नकारात्मक विचारों से सभी के हृदय व्यथित होते हैं। जनमानस की यह पीड़ा दूर करने के लिए विश्व बंधुत्व की इस परिकल्पना को सार्थक रूप दिया जा सकता है।
       ऐसी भावना यदि विश्व में रहने वाले सभी मनुष्य अपना लें तो सभी मिलजुल कर रहेंगे। उस समय कोई किसी का शत्रु नहीं रहेगा। रहेगा तो मात्र भाईचारा। ऐसी आदर्श स्थिति की कल्पना कितनी सुखद है? यह नामुमकिन तो शायद न हो पर असंभव जैसी तो अवश्य है। खैर, अच्छा सोचने में तो हमारा कुछ नहीं बिगड़ता। चलिए ईश्वर से इस शुभ की प्रार्थना करें।

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