मंगलवार, 4 नवंबर 2014

कहते हैं सब जन रिश्ते

कहते हैं सब जन रिश्ते बन रहे साया
बदला है रक्त का बंधन बन गया माया
नहीं नेह का मोल किसी को मन भाया
कहो जग की रीत है कौन कब निभाया

कहते हैं यूँ झूठे रिश्तों ने खूब भरमाया
बार-बार सबको दे-दे कर था पटकाया
हुए पराए अपने थे ऐसे यह समझाया
भूले से भी न था कोई अपना सरमाया

पर मेरा मन नहीं इसे मानता है भाया
नातों ने जीवन भर मुझको है हरषाया
ईशकृपा ने सभी रिश्तों से है महकाया
किसी भी नाते ने नहीं मुझे है तरसाया

दादी नानी दोनों ही पक्षों के हैं भरे-पूरे
परिवारों से मन भर-भर के सुख पाया
कोई चुभन नहीं सब है कसक गवाया
हर नाते ने पल-पल है मन को गरवाया

माँ-पापा का प्यार, दादी-दादा का दुलार
सब थाती हैं मेरी नानी-नाना की पुचकार
बुआ ताऊ चाचाओं के सब ही तो परिवार
लाए मेरे जीवन में हरपल प्यार की फुहार

मौसी व मामाओं की मनुहार की ये हिलोर
भाई-भाभी का नेह सदा इस मन को भाया
बहनों-बहनोइयों को मैंने है बाहू सा पाया

भतीजे-भतीजी ने सदा ही दिल बहलाया
भाँजों और भाँजी से सच सब सुख पाया
किसी नाते से वंचित नहीं ये हर्षित काया
ईश कृपा ने भर-भर यहाँ आनन्द लुटाया

प्रभुकृपा से मिला भी ससुराल मन भाया
बड़ों के नेह ने भी नहीं था कभी तरसाया
नंनदों के परिवारों से मैंने था नेह लगाया
अब समझ सकें यह आशीष मैंने है पाया

पति और बच्चों से बावला मन लहराया
जीवन के फूल सुत ने ये जीवन महकाया
पुत्रवधु व बिटिया पूर्वी से है घर भरपाया
सोचती हूँ ये झोली भर-भर नेह सहराया

जगत का वैरागीपन नहीं समझ में आया
बेनामी रिश्तों का दर्द क्यों है उभर आया
खुले मन से जिसने इनको बस अपनाया
इस जग में रहेगा न उनका कोई पराया।

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