रविवार, 16 नवंबर 2014

कर्म सिद्धांत की जटिलता

कर्म सिद्धांत बहुत ही जटिल है जिसे समझना वाकई कठिन है। फिर भी जितना पढ़ा है, समझा है आप सबके साथ सांझा कर रही हूँ। अच्छे या बुरे कर्मों का फल भुगतना जीव की नियति है। इसीलिए कहा है- 'अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्।'
        कुछ लोग मानते हैं कि गंगा आदि पवित्र नदियों में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं या तीर्थाटन करने से पाप कट जाते हैं- यह उचित नहीं हैं। अगर इस तरह पाप कटने लगें तो लोग सोते-जागते, उठते-बैठते हर समय पाप कर्म करेंगे और सरल विधि से उनसे मुक्त हो जाएंगे। पाप तो भोगने से ही कटते हैं और उस समय बहुत कष्ट देते हैं। इंसान अपने से व अपनो तक से किनारे कर दिया जाता है। उसका अपना साया तक उससे नजरें चुरा लेता है। इस कथन में किंचित भी अतिशयोक्ति नहीं है।
   कुछ दिन पूर्व एक पोस्ट पर अपने विचार लिखते हुए सुशील जी ने लिखा था- मैने बहुत सालों पहले कल्याण के वार्षिक अंक में पढा था, कर्मों का लेखा जोखा कैसे होता है? जैसे किसी ने ७०%धर्म किया है और ३०% पाप कर्म किया है तो ४०% ही पुण्य का फल मिलेगा, अगर किसी ने ८०% पाप कर्म किये हैं और सिर्फ २०% पुण्य किया है तो उसे ६०% पाप के कर्मों का फल तो भोगना ही पडेगा। कर्मों का हिसाब चुकाने के लिये उसको योनि मे जन्म तो मिलेगा ही। किस योनि मे मिलेगा यह तो कर्मों के आधार पर ही भगवान तय करता है।
      उनके विचार मुझे काफी तार्किक प्रतीत हुए। पाप-पुण्य या कर्मफल का विधान शायद यही हो सकता है। शायद यही इस लिए कह रही हूँ क्योंकि मैं इससे अनभिज्ञ हूँ। यदि ऐसा है तो भी और यदि कुछ भिन्न है तो भी अच्छे या पुण्य कर्म जब तक अधिकता में नहीं होंगे हम कष्टों-परेशानियों में फंसे रहेंगे।
बहुत वर्ष पहले जब मैं अपनी एम. ए. की पढ़ाई कर रही थी उस समय मैंने आनन्द स्वामी जी ने अपनी पुस्तकों का हस्ताक्षर किया सेट आशीर्वाद स्वरूप भेंट किया था। उसमें एक पुस्तक थी 'डरो वह बड़ा जबरदस्त है'। इसमें उन्होंने ने हमें समझाने का यत्न किया था कि ईश्वर मनुष्य को उसके किए गए पापकर्मों का किस प्रकार दण्ड देता है। सारी घटनाओं को स्वामी जी ने कहानियों के माध्यम से चित्रित किया था। उनमें से कुछ कहानियाँ आज भी स्मृति में हैं।
       ईश्वर का न्याय हमारी सोच से परे है। कहते हैं न कि उसकी लाठी की आवाज नहीं होती। इसीलिए बैठे-बिठाये कब कष्ट-परेशानी हमें आकर घेर लेती है पता ही नहीं चलता। हमारे द्वारा जाने-अनजाने  किए गए शुभाशुभ कर्मों का फल हमें भोगना पड़ता है।
        हमें यथासंभव श्रेष्ठ कर्मों की ओर प्रवृत्त होना चाहिए और स्वयं को पूर्ण रूप से उस प्रभु को समर्पित कर देना चाहिए। तब अपने अंतस् से आने वाली आवाज को सुनकर हम गलत रास्ते पर जाने से बच सकेंगे।

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