शुक्रवार, 7 नवंबर 2014

पारिवारिकता

इस संसार में हर जीव सामंजस्य बना कर रहता है। सभी जीव यानी की पशु-पक्षी अर्थात् पानी में रहने वाले (जलचर),  आकाश में उड़ने वाले (नभचर) और पृथ्वी पर रहने वाले (भूचर) सभी मिलजुल कर, झुंड बनाकर रहते हैं। वे भी मनुष्यों की तरह भावनाओं में विचरते हैं। उनमें सुख-दुख सांझा करने की प्रवृत्ति होती है।
      हम पक्षियों को तो अपने आसपास देखते हैं कि किसी भी पक्षी को यदि कष्ट होता है तो उसके साथी पास आकर उसका साथ देते हैं और उनका शोर हमें सुनायी पड़ता है।
        यही प्रवृत्ति पशुओं में भी देखने को मिलती है। टीवी के कितने ही चैनल हमें इन पशु-पक्षियों के बारे में बताते हैं। सभी प्रजातियों के जीव समूह में रहते हैं। अपने बच्चों की सुरक्षा करते हैं। हमला होने पर मिलकर उसका सामना करते हैं।
       अब सोचने वाली बात यह है कि मनुष्य के अलावा किसी जीव में बुद्धि नहीं है ऐसा हम मानते हैं फिर भी वे मिलजुलकर रहते हैं। इनके विपरीत बुद्धिमान मनुष्य झगड़ों में फंसा रहता है। वह मात्र केवल अपने स्वार्थों तक सीमित है। न उसे समाज की परवाह है और न परिवार की। दो लोग मिल बैठकर कोई समाधान नहीं ढूंढ सकते।
       आज हर शख्स सामाजिक व पारिवारिक ढाँचे को तहस-नहस करने पर तुला हुआ है। इसी का ही परिणाम है पारिवारिक विघटन अर्थात् तलाक होना। हमारे ग्रन्थ पग-पग पर समझाते हैं कि सहनशील बनो और अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से पालन करो। हमारे संस्कार हमारी धरोहर हैं। उनका त्याग कर असंस्कारी होना शुभ संकेत नहीं है।
          सभी सुधी जनों की नैतिक जिम्मेदारी है कि अपनी धरोहर को सम्हाल कर रखें। तभी हमारी पहचान बनी रहेगी। युवाओं को स्वछन्द आचरण न करने के लिए प्रेरित करना होगा जिससे वे अपने पारिवारिक जिम्मवारियों को बखूबी निभाएँ। जब वे माता-पिता के प्रति अपने दायित्वों का पूरी तरह निर्वहण करेंगे, पति-पत्नी दोनों आपसी तालमेल से प्रसन्नता पूर्वक जीवन व्यतीत करेंगे तभी तो आदर्श परिवार होंगे।
        मुझे विश्वास है कि आप सभी सुधी मित्र मनन करेंगे और इस ओर कदम बढ़ायेंगे।

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