मंगलवार, 14 अक्तूबर 2014

तीर्थ स्थलों की दुर्दशा

तीर्थ स्थलों की दुर्दशा देखकर मन को कष्ट होता है। मैं किसी एक की चर्चा नहीं कर रही बल्कि कमोबेश सभी तीर्थ स्थानों की यही स्थिति है।
       बहुत से तीर्थ स्थलों पर जाने का अवसर मिला। सबसे पहले वहाँ प्रवेश करते ही पंडे या उनके चेले पीछे हो जाते हैं। चाहे किसी की श्रद्धा हो या न हो पूजा कराने व दक्षिणा देने के लिए दबाव बनाते हैं। उनके इस कृत्य से बड़ी खीज होती है। अरे भाई जिसकी जितनी श्रद्धा या विश्वास होगा अथवा जितना उसकी जेब इजाजत देगी उसीके अनुसार ही तो मनुष्य खर्च करेगा। कुछ हमारे जैसे लोग भी हैं जो केवल इस लिए जाते हैं कि चलो उस तीर्थ स्थल के पास किसी कार्य या यात्रा के उद्देश्य से आएँ हैं तो चलो इन स्थानों पर भी घूमना हो जाए।
      इसके अलाव वहाँ सबसे बड़ी समस्या सफाई की है। जिस जलकुण्ड के माध्यम से अपनी रोजीरोटी कमाते हैं वहाँ चारों ओर फिसलन होती है। पानी इतना गंदा होता है कि उसमें सड़ांध होने लगती है। फिर उसी पानी में वे लोगों से स्नान व आचमन करने के लिए दबाव डालते हैं। पता नहीं उन लोगों को सभी बारबार सफाई करवाने के लिए कहते हैं पर उनके सिर पर जूँ भी नहीं रेंगती। वही ढाक के तीन पात।
         भारत के अधिकांश मंदिरों में भी कमोबेश यही स्थिति है। साफ-सफाई की ओर ध्यान उतना नहीं दिया जाता जितना देना चाहिए।
         बहुत दुख होता है इन सबको देखकर। जिन स्थलों पर लोग श्रदा पूर्वक पैसा और समय खर्च करके जाते हैं वहाँ का वातावरण उनके मनों को व्यथित करता हैं। सुख-शांति की कामना अनायास ही परेशानी में बदल जाती है।
      मैं हृदय से इन धार्मिक व पवित्र स्थलों की सुचारू व्यवस्था की कामना करती हूँ। सरकार हर स्थल की सफाई का बीड़ा उठाए यह सोच गलत है। वहाँ रहने वाले तथाकथित धर्म के ठेकेदारों का यह मौलिक कर्त्तव्य है कि वे अपने यजमानों व पर्यटकों की सुविधाओं की व्यवस्था कराएँ ताकि वहाँ जाने वाले श्रद्धालुओं को निराशा न हो।

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