शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2014

स्त्री शिक्षा

शिक्षा की समस्या आज हमारे भारत में बहुत ही विकट है। यहाँ अशिक्षा का प्रतिशत अधिक है। उस पर लड़कियों की शिक्षा? बड़े शहरों में भी इस समस्या से हम इन्कार नहीं कर सकते तो फिर छोटे शहरों, गाँवों व कस्बों में स्थितियाँ और भी चौंकाने वाली हैं।
      यहाँ हम नारी शिक्षा की चर्चा करेंगे। लड़कियों को शिक्षित करना इसलिए आवश्यक है कि वे समाज व परिवार की धुरी हैं। उनके पढ़े होने से वे पूरी पीढ़ी को शिक्षित कर सकती हैं।आज भी बहुत से परिवारों में उन्हें शिक्षा से वंचित किया जाता है।
       प्रातः स्मरणीय स्वामी दयानन्द सरस्वती, राजाराम मोहन राय जैसे महापुरुषों ने स्त्री शिक्षा पर बल दिया।
       वैदिक काल की गार्गी, सुलभा, मैत्रयी, कात्यायनी आदि सुशिक्षित स्त्रियाँ थीं जो ऋषि- मुनिओं की शंकाओं का समाधान करती थी।
      राजा अर्थात् सरकार का कर्त्तव्य है कि वह शिक्षा के लिए सजग हो। देश में कोई भी बच्चा विद्या से रहित न हो। ऋग्वेद ६/४४/१८ का भाष्य करते हुए स्वामी दयानंद लिखते हैं राजा ऐसा यत्न करे जिससे सब बालक और कन्यायें ब्रह्मचर्य से विद्यायुक्त होकर समृधि को प्राप्त हो सत्य, न्याय और धर्म का निरंतर सेवन करें।
       इसी प्रकार यजुर्वेद १०/७ में भी कहा है कि राजा को प्रयत्नपूर्वक अपने राज्य में सब स्त्रियों को विदुषी बनाना चाहिए।
      इसके अतिरिक्त विद्वानों से भी ऋग्वेद ३/१/२३ में कहा गया है कि सब कुमार और कुमारियों को पुन्दित बनावे, जिससे सब विद्या के फल को प्राप्त होकर सुमति हों।
      इसी प्रकार विदुषियों के लिए भी ऋग्वेद २/४१/१६ में निर्देश है कि जितनी कुमारी हैं वे विदुषियों से विद्या अध्ययन करें।
         हम इस बात से इन्कार नहीं कर सकते कि भारत में स्त्रियाँ शिक्षित होती थीं  वे अध्ययन-अध्यापन का कार्य करती थीं।
       सारी समस्याओं की जड़ मुगल काल है जहाँ लड़कियों को शिक्षा से वंचित रहने पर विवश कर दिया गया। आज हम परतंत्रता की बेड़ियों को तोड़कर स्वतंत्रता पूर्वक जीवन यापन कर रहे हैं। अब हमारा कर्त्तव्य बनता है कि हम समाज से कुरीतियों को उखाड़ फैंके और प्राचीन गौरव के अनुरूप अपनी बेटियों को शिक्षा के अधिकार से वंचित न रखें।

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