बुधवार, 15 अक्तूबर 2014

मनीष की पुण्य तिथि पर

पुत्र मनीष की दसवीं पुण्य तिथि पर
काल के क्रूर पंजों ने तब
ऐसी चलाई आँधी थी कि
घर का चिराग बुझा गया।
जिस चिराग ने निश-दिन
करना था घर को जगमग
वही उसे अँधेरा बना गया।
पता ही नहीं चला कब से
घात लगाए बैठा था काल
पल में सब उड़ा चला गया।
माता-पिता, भाई-भाभी और
भरा-पूरा परिवार, मित्र सबको
मौन बैठे हुए तकना पड़ गया।
देखते-ही-देखते हमारे प्रिय तुम
सबको तज चल पड़े न जाने
कौन-से नव पथ पर हो विलग।
जाओ वत्स कभी न लौटने को
हम सबका है शुभ आशीष तुमको
तुम्हारे नवजीवन के लिए सदा।

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