शनिवार, 11 अक्तूबर 2014

आश्रम व्यवस्था

प्राचीन ऋषियों ने सामाजिक ढाँचे को सुचारु रूप से चलाने के लिए वर्णाश्रम व्यवस्था का विधान बनाया था। हम यहाँ आश्रम व्यवस्था पर विचार करते हैं।
         मनुष्य की आयु सौ वर्ष मानकर विभाजन किया गया। आश्रमों का विभाजन इस प्रकार था-
1. ब्रह्मचर्य आश्रम- आयु जन्म से लेकर पच्चीस वर्ष। यह समय विद्या अध्ययन का होता है।
2. गृहस्थ आश्रम- इस आश्रम में आयु पच्चीस से पचास वर्ष है। पढ़ने के बाद विवाह करके अपनी गृहस्थी बसाना। सामाजिक, धार्मिक व नैतिक कर्तव्यों का निर्वाह करना।
3. वानप्रस्थ आश्रम- इस आश्रम में आयु पचास से पिचहत्तर वर्ष मानी गयी है। अपने दायित्वों से मुक्त होकर ईश्वर की आराधना में मन लगाने का समय।
4. सन्यास आश्रम- पिचहत्तर वर्ष के पश्चात मृत्यु पर्यंत समय। जीवन में अर्जित ज्ञान व अनुभव के भंडार को समाज के साथ बाँटना व समाज का पथ प्रदर्शन करना।
      यह थी चार आश्रमों के माध्यम से सुंदर सामाजिक व्यवस्था। इसके अनुसार कहीं कोई परेशानी नहीं। इस विधान के अनुसार विवाह की आयु पच्चीस वर्ष है। बालविवाह की गुंजाइश ही नहीं है। सभी लोगों को उनकी आयु के अनुसार कार्य का विभाजन कर दिया गया है। कहीं भी टकराव की स्थिति नहीं बनती।

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