बुधवार, 15 अक्तूबर 2014

बाल विवाह

भारत में जड़ कर गई कुरीतियों में बाल विवाह एक ज्वलंत समस्या है।इक्कीसवीं सदी में जहाँ विश्व सफलता की बुलंदियों को छू रहा है हम इन सामाजिक कुरीतियों पर चर्चा कर रहे हैं। बड़े दुख की बात है कि टीवी व इन्टरनेट के जमाने में भी न जाने कितने मासूम इन ढकोसलों की बलि पर चढ़ जाते हैं।
       वैदिक काल में भी बाल विवाह जैसी रूढ़ियाँ नहीं थी। हमारे भारत की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था गुरुकुल प्रणाली थी। बच्चे गुरु के पास अध्ययन के लिए जाते थे। आश्रम व्यवस्था में यह काल ब्रह्मचर्य आश्रम कहलाता था। इस आश्रम में आयु 25 वर्ष होती थी। इसका सीधा-सा अर्थ है कि बच्चा 25 वर्ष तक शिक्षा ग्रहण करे और फिर गृहस्थ आश्रम में प्रवेश  अर्थात् विवाह की आयु 25 वर्ष निश्चित थी। इस व्यवस्था में बाल विवाह की गुंजाइश ही नहीं थी।
       जिस उम्र में बच्चे गुड्डे-गुड़ियों से खेलते हैं इन्हें शादी के मंडप में बिठा दिया जाता है। पढ़ने-लिखने की सुविधा से ये वंचित रह जाते हैं। इसका परिणाम सारी जिन्दगी इन लोगों को भुगतना पड़ता है। अशिक्षित हो जाने के कारण अच्छी नौकरी नहीं मिल पाती। जीवन की मुँह बाये खड़ी समस्याओं से जूझना बहुत कठिन हो जाता है। इसके साथ ही कच्ची उम्र में विवाह का उपहार इन लोगों को बीमारियों के रूप में भी मिलता है। आर्थिक व स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के चलते जीवन में कठिनाइयों का पग-पग पर सामना करना पड़ता है।
      वास्तव में इस प्रथा का प्रचलन मुगल काल में हुआ। माना कि उस समय लड़कियों की सुरक्षा हेतु शायद इसका प्रचलन हुआ होगा।
     आज हमारा देश स्वतंत्र है। अब इस समय हम इन समस्याओं से सरलता से मुक्त हो सकते हैं फिर इन्हें सीने से लगाए रखने की कोई आवश्यकयता महसूस नहीं होती। बच्चों के खुशहाल व स्वस्थ जीवन की कामना करते हुए मैं आप सभी सुधी जनों से अनुरोध करती हूँ कि कुरीति को जड़ से उखाड़ने में सहायता करें। हालांकि हमारे समाज सुधारक सैंकड़ों वर्षों  से इन कुरीतियों की मुक्ति के लिए प्रयास करते रहे। सरकार से भी कड़े कानून बनाने की अपील करती हूँ जिससे बाल विवाह की कुप्रथा पर लगाम कसी जा सके। सामाजिक संगठन तो अपने स्तर पर इसे रोकने के उपाय करते ही रहते हैं।

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