मंगलवार, 28 अक्तूबर 2014

कुम्हार का चाक

उस कुम्हार का चाक चले दिन रैना
पिस के उसमें सब जग करता बैना
बच न पाए यहाँ पर देखो कोई सैना
पल छिन में छिन जाता है सब चैना

भाग सका न कोई इसके तीखे नैना
चुहुल नहीं बस चलना इसको हैना
घूम घुमन्तु चर चर करता है ये पैना
देखे चहके ओर चहुँ रे यह बिन नैना

जीव मेरा उड़ना चाहे फैलाकर डैना
नहीं चाहता पिसना बनकर ये मैना
फिर फिर आए फिर फिर जाए दैना
न पूछे उससे पर खोता जाता जैना

तराश रहा पकड़ हाथ हथौड़ा छैना
गढ़ता जाता यूँ मूरत सब ऐना गैना
प्राण फूँक इनमें बस बन जाता शैना
तोड़े चाहे मोड़े बोल जाए तब टैना।

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