सोमवार, 27 अक्तूबर 2014

दहेज की समस्या

दहेज का प्रचलन दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। हर दूसरा व्यक्ति पहले से बढ़चढ़ कर प्रदर्शन करना चाहता है। सब समाज में अपनी नाक ऊँची करना चाहते हैं। खुद ही सोचिए कहाँ पहुँचेंगे हम?
       अपनी बेटी को कोई परेशानी न हो इसलिए माता-पिता रेस में भागते रहते हैं। वे चाहते हैं कि उनकी बेटी को ससुराल में सम्मान मिले, दहेज के नाम पर अपमानित न होना पड़े। और इससे भी बढ़कर पानी की तरह पैसा बहाकर वे समाज में प्रदर्शन करना चाहते हैं। सामान्य परिवार शादी में खर्च करने के लिए सालों उधार चुकाते रहते हैं। कभी-कभी अपनी सम्पत्ति भी बेचते हैं। कहने का अर्थ है अपनी सारी जमा पूँजी होम कर देते हैं। अपने बुढ़ापे में मोहताज हो जाते हैं।
       दहेज शब्द आज रूढ़ हो गया है। इसका अर्थ लोगों ने ठीक से न समझकर अनर्थ को न्योता दे दिया है। दहेज के लालच में स्त्रियों पर यदाकदा अत्याचार अर्थात् आग में जलाना, शारीरिक यातना आदि खबरें टीवी व समाचार पत्रों में पढ़ने को मिल जाती हैं। है। इसका कारण है दहेज शब्द के सही अर्थ को समझकर न समझना है। हमारे ग्रन्थ कहते हैं कि माता-पिता ज्ञान, विद्या और उत्तम संस्कार आदि गुण अपनी बेटी को भेंट करें।
       प्राचीन काल में माता-पिता विवाह के समय बेटी को घर-गृहस्थी की आवश्यक वस्तुएँ देकर विदा करते थे। आज तो इस समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है। इसकी जिम्मेदार लड़कियाँ स्वयं भी हैं जो सोचती हैं कि सारी धन-सम्पत्ति तो भाई को दी जाती हैं तो वो अपना हिस्सा क्यों न लें। इस कारण वे मुँह खोल कर अपनी शादी में खर्चा करवाती हैं।
     समृद्ध परिवारों में समस्या नहीं हैं पर आर्थिक रूप से सामान्य परिवारों को सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
        मैं युवा पीढ़ी से अनुरोध करती हूँ कि अपने हौसले बुलंद रखे व अपनी कमाई के भरोसे अपनी गृहस्थी बनाने की ओर कदम बढ़ाए। इससे समाज को इस कोढ़ से बचने में सहायता मिल सके।

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