गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014

बच्चे का गुरु- माता-पिता

माता बच्चे की पहली गुरु होती है क्योंकि वह उसे बोलना सिखाती है। इसी प्रकार पिता उसका भरण-पोषण करता है तथा उसकी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। एवंविध माता और पिता एक बच्चे के जीवन में अहम् भूमिका निभाते हैं। वे दोनों मिलकर अपनी संतान को इस योग्य बनाते हैं कि वह संसार में सिर उठा कर चल सके और भविष्य में अपना जीवन यापन बाधा रहित होकर कर सके।
        बच्चों को जो संस्कार माता-पिता या घर के बड़े-बजुर्ग दे सकते हैं कोई अन्य नहीं दे सकता। इसमें मैं जोड़ना चाहूँगी न आया-नौकर, न क्रच वाले और न ही पड़ौसी व रिश्तेदार। सभी लोग बच्चे के शालीन व मधुर व्यवहार की प्रशंसा कर सकते हैं तथा साथ ही उसके माता-पिता की भी सराहना कर सकते हैं कि उन्होंने अपने बच्चे को इतना संस्कारी बनाया। इसके विपरीत अभद्र व कठोर व्यवहार करने वाले बच्चे की उसके माता-पिता सहित सभी आलोचना करते हैं। हो सकता है उनका लिहाज करते हुए प्रत्यक्षत:(सामने) केवल संकेत मात्र करें परंतु परोक्षतः(पीठ पीछे) उन्हें कोसने से नहीं चूकेंगे कि उनका बच्चा कितना बिगड़ा हुआ है। ऐसे तथाकथित बिगड़े बच्चों को कोई अपने घर पर आने देना पसंद नहीं करता।
      इसीलिए हमारे ग्रंथ हमें समझाते हैं-
माता शत्रु पिता वैरी येन बालो न पाठित:।
न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा।।
         इस श्लोक का अर्थ है कि वह माता या पिता शत्रु हैं जिन्होंने अपने बच्चे को नहीं पढ़ाया। वह बच्चा सभा में उसी तरह सुशोभित नहीं होता जैसे हंसों के बीच बगुला।
इस श्लोक में विद्या अध्ययन की चर्चा है। आज इक्कीसवीं सदी में भी बहुत से बच्चे विद्यालय जाने में अपनी मजबूरियों के कारण असमर्थ हैं। यहाँ हम उन बच्चों की बात करते हैं जो विद्यालयीन शिक्षा तो ग्राहण करते हैं पर उच्छृंखल हैं। ऐसे बच्चों के माता-पिता भी अपने बच्चों व समाज के शत्रु हैं जो संतान को संस्कार नहीं देते अपितु यह कहकर अपना पल्लू झाड़ने की कोशिश करते हैं कि क्या करें बच्चा हमारी सुनता नहीं? ऐसे ही बच्चे आगे जाकर समाज, देश व जाति को हानि पहुँचाते हैं।
        हमें यह गम्भीरता से विचार करना है कि हम अपने दायित्वों के प्रति कितने सजग हैं? अपने बच्चों को संस्कारित करके भावी पीढ़ियों के प्रति भी हम उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं।

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