बुधवार, 8 अक्तूबर 2014

ब्राह्मण

जब तक ब्राह्मण का ब्राह्मणत्व बना रहता है उसे ईश्वर की आराधना के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु की चाह भी नहीं रहती। परंतु ऐसे ब्राह्मण आज के युग में शायद ही मिलें जो वास्तव में मन, वचन व कर्म से एक हों अर्थात् उनकी कथनी व करनी में अंतर न हो। ऐसे महानुभावों के कथन का जनमानस पर प्रभाव पड़ता है। ये वही महापुरुष होते हैं जो समाज में दशा और दिशा निर्धारित करते हैं। जो वास्तव में ब्राह्मण होगा वो ढकोसलों का विरोध कर समाज को दिशा देने का कार्य करेगा। इतिहास भरा पड़ा है ऐसे महापुरुषों के उदाहरणों से।
      बिना किसी पूर्वाग्रह के आप मेरी इस बात से सहमत होंगे कि आज ब्राह्मण केवल रूढ़ शब्द बन गए हैं। जो ब्राह्मण पूजाकर्म से अपना जीविकोपार्जन करना चाहते हैं वे अपने को योग्य बनाने का कष्ट नहीं करते। प्राय: वे अशुद्ध मंत्रोच्चारण करते हैं। कुछ गिने चुने संस्कार उन्होंने करवाने होते हैं पर उन मन्त्रों को कण्ठस्थ नहीं करते और न ही शुद्ध उच्चारण पर बल देते हैं। हम जैसे लोगों को इस बात से बहुत कष्ट होता है कि हमारे देश में ब्राह्मण कहलाने वाले कहाँ जा रहे हैं। हम शब्द को ब्रह्म अर्थात् ईश्वर का रूप मानते हैं।अशुद्ध उच्चारण भी वातावरण को प्रदूषित करता है।
     जहाँ तक मैं मानती हूँ एक व्यक्ति जो श्रद्धापूर्वक व पैसा खर्च करके संस्कारों को करवाता है नहीं चाहेगा कि कोई उसकी भावनाओं से खिलवाड़ करे। शास्त्र मानते हैं कि यदि मंत्रोच्चार अशुद्ध होता है तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है। ऐसी स्थिति में यजमान को लाभ के स्थान पर हानि हो जाती है।
          अपने ब्राह्मण साथियों से आग्रह करूँगी कि अपने दायित्व के प्रति कृतसंकल्प हो जायें और अपने यजमानों की भावनाओं का पूरे मन से सम्मान करें। ईमानदारी से अपने दायित्व का पालन करें।

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