रविवार, 5 अक्तूबर 2014

प्रकृति

ईश्वर निर्मित सृष्टि आदिकाल से अपने नियम से चलती है वहाँ चूक की कोई संभावना नहीं है। सूर्य, चन्द्र आदि सभी ग्रह-नक्षत्र, नदियाँ-सागर, वायु, पेड़-पौधे आदि सभी अपने नियत नियमों का पालन करते हैं। एक मनुष्य ही ऐसी रचना है जो सभी नियमों को ताक पर रखने की आदी है। उसे कोई चिन्ता नहीं। उसकी बला से दुनिया भाड़ में जाए। वह तो लापरवाह है, मस्त है। जो होगा देखा जाएगा वाला उसका रवैया सचमुच कष्टदायक है।
         इसे हम इस प्रकार समझते हैं- यदि सूर्य सोचने लगे कि अरबों-खरबों वर्षों से मेरा वही नियम है प्रात:काल पूर्व से उदय होना और सायंकाल को पश्चिम में अस्त होना। सारा दिन गरमी और प्रकाश देते रहो। अब मैं थक गया हूँ।चलो थोड़े दिन की छुट्टी पर चला जाऊँ तो सब कुछ अंधकारमय हो जाएगा। सारी व्यवस्था चरमरा जाएगी। इसी प्रकार जल अपने को समेट ले तो चारों ओर त्राहि-त्राहि मच जाएगी। दुनिया का अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर आ जाएगा। एवंविध वायु अगर कुछ पल के लिए ही अवकाश पर चली जाए तो संसार का वायु के बिना अस्तित्व निस्संदेह समाप्त हो जाएगा। इसी तरह अन्य प्राकृतिक पदार्थों का भी विशलेषण कर सकते हैं।
        हम देखते हैं कि प्रकृति का हर कण, हर जर्रा हमारी सुख-सुविधा जुटाता रहता है। परंतु बड़े दुख की बात है कि मनुष्य हरपल प्रकृति से छेड़छाड़ करके अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने की योजनायें बनाता रहता है। तभी थोड़े-थोड़े समय बाद हमें प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता कभी अकाल के रूप में, कभी भूकंप के रूप में, कभी बाढ़ के रूप में, कभी अतिवृष्टि के रूप में और कभी अनावृष्टि के रूप में। इसी कड़ी में जोड़ना चाहती हूँ कि तभी हमें पर्यावरण जैसी समस्याओं पर विवाद करना पड़ता है।
       इसी कड़ी में जोड़ना चाहती हूँ कि तभी हमें पर्यावरण जैसी समस्याओं पर विवाद करना पड़ता है।
       हम सबको मिलकर तय करना है कि हम प्रकृति से मित्रता करेंगे या शत्रुता। इसी प्रकार यह भी विचारणीय है कि हम भी अपने जीवन को नियमानुसार चलाएंगे और दुखों-परेशानियों से दूर रहने का यथासंभव यत्न करेंगे।

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