गुरुवार, 9 अक्तूबर 2014

तालाक की समस्या

बहुत गम्भीर प्रश्न है कि उन मासूम बच्चों का क्या दोष जिनके माता-पिता तालाक ले लेते हैं? हो सकता है उनमें से कुछेक को यह भी पता न हो कि आखिर ऐसा क्या हो गया जो उन्हें माँ-पापा में से एक को चुनना पड़ रहा है। इसे उसी गहराई से सोचिए।
       यह सार्वभौमिक सत्य है कि विवाह विच्छेद होने अथवा तलाक का प्रमुख कारण एक साथी का दूसरे के प्रति विश्वास तोड़ना होता है। साथी कहिए या मित्र जहाँ एक-दूसरे के प्रति वफादार नहीं होते वहाँ अलगाव की स्थिति होती है। आपस के दुराग्रह के कारण बच्चों के कोमल मन की आहुति दे दी जाती है। वे दोनों इस सत्य को अपने तुच्छ स्वार्थ के कारण भूल जाते हैं कि बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए माता और पिता दोनों की भूमिका अहम् होती है।
       आज युवा पीढ़ी में असहिष्णुता बढ़ती जा रही है। कोई भी आपसी संबंधों को बचाने के लिए गम खाना नहीं चाहता। पुरुषप्रधान समाज में पुरुष झुकने में अपनी हेठी समझता है। स्त्री की सोच कि वह भी बराबर का कमाती है तो वो ही क्यों झुके। वह मानती है कि जितना घर उसका है उतना ही उस पति नामक पुरुष का भी है। यदि वह नौकरी करने के बाद घर व बच्चों को देखे तो पुरुष भी बराबर सहयोग करे। दोनों अपनी-अपनी जिद पर अड़े रहते हैं और खामियाजा बच्चों को भुगतना पड़ता है। वे बेचारे अलग-थलग डरे-सहमे हुए इस अनावश्यक बहस का हिस्सा बनते हैं।
    स्त्री-पुरुष का संबंध घी और आग के संयोग की तरह माना जाता है। केवल मात्र यही एक संबंध है जहाँ एक-दूसरे की बेवफाई पर खून कर दिए जाते हैं या आत्महत्या कर ली जाती है।
      हमारे भारत में ही नहीं पूरे विश्व में कमोबेश स्त्री-पुरुष संबधों की यही स्थिति है। संबंधों में पारदर्शिता होना आवश्यक है।
       आज की युवा पीढ़ी को भटकाव से रोकने में माता-पिता व समाज को सकारात्मक रवैया अपनाना होगा जिससे परिवारों में विघटन अर्थात् टूटने-बिखरने की स्थितियाँ न बनें। यह वैवाहिक संस्था सुचारू रूप से चलती रहे।

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