आसमान के अनगिनत तारों को
देखूँ तो नज़र भर उन प्यारों को
ढूँढती हूँ मैं अपने सब दुलारों को
नहीं मिलता ओरछोर वो मुझको।
सुना था हमसे बिछुड़ कर गए जो
अब तारे आकाश के कहलाते हैं वो
चमचमाती लौ की तरह हैं अब तो
दूर से हम सबको अब भाते हैं वो।
कैसे भूलूँ सभी ही मेरे सहारे थे वो
जीवन के कितने खट्टे-मीठे पल वो
हमने इक साथ बिताए थे कभी जो
नश्तर बन चुभते हैं इस दिल में वो।
सोचती हूँ जाके ढूँढू उन सितारों को
शायद कोई सदियों से निहारता हो
मेरे आने की बाट बेकरार जोहता हो
मुझे निरख पलभर सकूँ पा सके वो।
चलें अब अज्ञात पथ पर तैयार हो
जाने कौन थाम ले मुझे इस पल को
थक गयी हूँ निहारकर रोज तार को
नहीं खोज पायी अपने उस प्यारे को।
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